🔹 ध्वनि तब पैदा होती है जब वस्तु कम्पन करती है या कम्पमान वस्तुओं से ध्वनि पैदा होती है ।
किसी वस्तु को कम्पित करके ध्वनि पैदा करने के लिए आवश्यक ऊर्जा किसी बाह्य स्रोत द्वारा उपलब्ध करायी जाती है ।
🔹 उदाहरण :- तबला या ड्रम की तनित झिल्ली पर हाथ से मारकर कम्पन पैदा करते हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है ।
तरंग एक विक्षोभ है जो माध्यम में गति करता है तथा एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ऊर्जा ले जाता है जबकि दोनों बिन्दुओं में सीधा सम्पर्क नहीं होता है । ध्वनि यांत्रिक तरंगों के द्वारा संचरित होती है ।
अनुदैर्ध्य तरंग :-
🔹 वह तरंग जिसमें माध्यम के कण आगे पीछे उसी दिशा में कम्पन करते हैं जिस दिशा में तरंग गति करती है , अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है ।
अनुप्रस्थ तरंगें का उत्पन्न :-
🔹 जब तरंग स्लिंकी में गति करती है तब इसकी प्रत्येक कुण्डली ( छल्ला ) तरंग की दिशा में आगे – पीछे एक छोटी दूरी तय करती है । अतः अनुदैर्ध्य तरंग है ।
🔹 जब स्लिंकी के एक सिरे को आधार से स्थिर करके दूसरे सिरे को ऊपर नीचे तेजी से हिलाते हैं तब यह अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न करती हैं ।
ध्वनि तरंग के अभिलक्षण :-
🔹 ध्वनि तरंग के अभिलक्षण है :-
तरंग दैर्ध्य
आवृत्ति
आयाम
आवर्तकाल
तरंग वेग
तरंग दैर्ध्य :-
🔹 ध्वनि तरंग में एक संपीडन तथा एक सटे हुए विरलन की कुल लम्बाई को तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
🔹 दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों के मध्य बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
🔹 एक पूर्ण दोलन में कोई तरंग जितनी दूरी तय करती है , उसे तरंग दैर्ध्य कहते हैं ।
तरंग दैर्ध्य को ग्रीक अक्षर लैम्डा ( λ ) से निरूपित करते है ।
इसका S.I. मात्रक मीटर ( m ) है ।
आवृत्ति :-
🔹 एक सेकेण्ड में उत्पन्न पूर्ण तरंगों की संख्या या एक सेकेण्ड में कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं ।
🔹 एक सेकेण्ड में गुजरने वाले सम्पीडनों तथा विरलनों की संख्या को भी आवृत्ति कहते हैं ।
किसी तरंग की आवृत्ति उस तरंग को उत्पन्न करने वाली कम्पित वस्तु की आवृत्ति के बराबर होती है ।
आवृत्ति का S.I. मात्रक हर्ट्ज ( Hertz प्रतीक Hz ) है ।
आवृत्ति को ग्रीक अक्षर ( v ) प्रदर्शित करते हैं ।
🔶 हर्ट्ज :- एक हर्ट्ज , एक कम्पन प्रति सेकेण्ड के बराबर होता है ।
🔶 हर्ट्ज :- एक हर्ट्ज , एक कम्पन प्रति सेकेण्ड के बराबर होता है ।
🔹 आवृत्ति का बड़ा मात्रक किलोहर्ट्ज है । KHz = 1000 Hz .
आवर्तकाल :-
🔹 एक कम्पन या दोलन को पूरा करने करने में लिए गये समय को आवर्तकाल कहते हैं ।
🔹 दो क्रमागत संपीडन या विरलन को एक निश्चित बिन्दु से गुजरने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं ।
आवर्तकाल का S.I. मात्रक सेकेण्ड ( S ) है ।
इसको T से निरूपित करते हैं ।
किसी तरंग की आवृत्ति आवर्तकाल का व्युत्क्रमानुपाती है ।
n = 1/T
आयाम :-
🔹 किसी माध्यम के कणों के उनकी मूल स्थिति के दोनों और अधिकतम विस्थापन को तरंग का आयाम कहते हैं ।
आयाम को ‘ A ’ से निरूपित करते हैं ।
इसका S.I. मात्रक मीटर ‘ m ‘ है ।
ध्वनि से तारत्व , प्रबलता तथा गुणता जैसे अभिलक्षण पाये जाते हैं ।
तरंग वेग :-
🔹 एक तरंग द्वारा एक सेकेण्ड में तय की गयी दूरी को तरंग का वेग कहते हैं ।
इसका S.I. मात्रक मीटर / सेकेण्ड ( ms⁻¹) है ।
वेग = चली गयी दूरी/लिया गया समय
V = λ/T ध्वनि की तरंगदैर्ध्य है और यह T समय में चली गयी है ।
🔹 अतः V = λv ( = v nu ) वेग = तरंग दैर्ध्य × आवृत्ति
तारत्व :-
🔹 ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है । यह आवृत्ति के समानुपाती होता है ज्यादा आवृत्ति , ऊँचा तारत्व , कम आवृत्ति , निम्न तारत्व ।
🔹 उदहारण :- औरतों की आवाज तीक्ष्ण होती है उसका तारत्व ज्यादा होता है जबकि पुरुषों की आवाज का तारत्व कम होने से उनकी आवाज सपाट होती है । क्योंकि औरतों की वोकल कार्ड की आवृति अधिक होती है अर्थात तारत्व ज्यादा होता है जिससे आवाज़ पतली होती है ।
🔹 उच्च तारत्व की ध्वनि में एक इकाई समय में बड़ी संख्या में सम्पीडन तथा विरलन एक निश्चित बिन्दु से गुजरते हैं ।
निम्न तारत्व – कम आवृत्ति
ज्यादा तारत्व – ज्यादा आवृत्ति
प्रबलता :-
🔹 ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम पर निर्भर होती है । कानों में प्रति सेकंड पहुँचने वाली ध्वनि ऊर्जा के मापन को प्रबलता कहते हैं ।
प्रबल ध्वनि → ज्यादा ऊर्जा → ज्यादा आयाम
मृदु ध्वनि → कम ऊर्जा → कम आयाम
प्रबलता को डेसीबल ( db ) में मापा जाता है ।
ध्वनि की प्रबलता उसके आयाम के वर्ग की समानुपाती होती है ।
प्रबलता ∝ ( आयाम ) 2
गुणता :-
🔹 किसी ध्वनि की गुणता उस ध्वनि द्वारा उत्पन्न तरंग की आकृति पर निर्भर करती है । यह संगीतमय ध्वनि का अभिलक्षण है । यह हमें समान तारत्व तथा प्रबलता की ध्वनियों में अन्तर करने में सहायता करता है ।
टोन :-
🔹 एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं ।
स्वर :-
🔹 अनेक ध्वनियों के मिश्रण को स्वर कहते हैं ।
शोर :-
🔹 80dB से ज्यादा प्रबलता की ध्वनि शोर कहलाती है । शोर सुनने में कर्णप्रिय नहीं होता है ।
संगीत :-
🔹 संगीत सुनने में सुखद होता है , और इसकी गुणता अच्छी होती है ।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल :-
🔹 ध्वनि की चाल पदार्थ ( माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है , जिसमें यह संचरित होती है । यह गैसों में सबसे कम द्रवों में ज्यादा तथा ठोसों में सबसे तेज होती है ।
🔹 ध्वनि की चाल तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है ।
🔹 हवा में आर्द्रता ( नमी ) बढ़ने के साथ ध्वनि की चाल बढ़ती है ।
प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से तेज है । इसीलिए आकाश में बिजली की चमक गर्जन से पहले दिखाई देती है ।
वायु में ध्वनि की चाल 22 ° C पर 344 ms⁻¹ है ।
ध्वनि बूम :-
🔶 प्रघाती तरंगें :- कुछ वायुयान , गोलियाँ तथा रॉकेट आदि पराध्वनिक चाल से चलते हैं । पराध्वनिक का तात्पर्य वस्तु की उस चाल से है , जो ध्वनि की चाल से तेज ( ज्यादा ) होती है । ये वायु में बहुत तेज आवाज पैदा करती है जिन्हें प्रघाती तरंगें कहते हैं ।
🔹 ध्वनि बूम प्रघाती तरंगों द्वारा उत्पन्न विस्फोटक शोर है ।
🔹 यह जबरदस्त ध्वनि ऊर्जा का उत्सर्जन करता है जो खिड़कियों के शीशे तोड़ सकती है ।
ध्वनि का परावर्तन :-
🔹 प्रकाश की तरह ध्वनि भी जब किसी कठोर सतह से टकराती है तब वापस लौटती है । यह ध्वनि का परावर्तन कहलाता है ।
🔹 ध्वनि भी परावर्तन के समय प्रकाश के परावर्तन के नियमों का पालन करती है :-
( i ) आपत्ति ध्वनि तरंग , परावर्तित ध्वनि तरंग तथा आयतन बिन्दु पर खींचा गया अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं ।
( ii ) ध्वनि का आपतन कोण हमेशा ध्वनि के परावर्तन कोण के बराबर होता है ।
ध्वनि के परावर्तन के उपयोग :-
🔹 मेगाफोन या लाउडस्पीकर , हॉर्न , तुरही और शहनाई आदि । इस प्रकार बनाये जाते हैं कि वे ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाये बिना एक ही दिशा में भेजते हैं ।
इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार – बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है ।
इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है ।
प्रतिध्वनि :-
🔹 ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव ( पुनः सुनना ) को प्रतिध्वनि कहते हैं ।
हम प्रतिध्वनि तभी सुन सकते हैं जब मूल्य ध्वनि तथा प्रतिध्वनि ( परावर्तित ध्वनि ) के बीच कम से कम 0.1 सेकेण्ड का समय अन्तराल हो ।
प्रतिध्वनि तब पैदा होती है जब ध्वनि किसी कठोर सतह ( जैसे ईंट की दीवार पहाड़ आदि ) से परावर्तित होती है । मुलायम सतह ध्वनि को अवशोषित करते हैं ।
अनुरणन :-
🔹 किसी बड़े हॉल में , हॉल की दीवारों , छत तथा फर्श से बार – बार परावर्तन के कारण ध्वनि का स्थायित्व ( ध्वनि का बने रहना ) अनुरणन कहलाता है ।
🔹 अगर यह स्थायित्व काफी लम्बा हो तब ध्वनि धुंधली , विकृत तथा भ्रामक हो जाती है ।
किसी बड़े हॉल या सभागार में अनुरणन को कम करने के तरीके :-
सभा भवन की छत तथा दीवारों पर संपीडित फाइबर बोर्ड से बने पैनल ध्वनि का अवशोषण करने के लिए लगाये जाते हैं ।
खिड़की , दरवाजों पर भारी पर्दे लगाये जाते हैं ।
फर्श पर कालीन बिछाए जाते हैं ।
सीट ध्वनि अवशोषक गुण रखने वाले पदार्थों की बनायी जाती है ।
प्रतिध्वनि तथा अनुरणन में अन्तर :-
प्रतिध्वनि
ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव को प्रतिध्वनि कहते हैं ।
प्रतिध्वनि एक बड़े खाली हॉल में उत्पन्न होती है । ध्वनि का बार बार परावर्तन नहीं होता है और ध्वनि स्थायी भी नहीं होती है
अनुरणन
किसी बड़े हॉल में छत , दीवारों तथा फर्श से ध्वनि के बार बार परावर्तन के कारण ध्वनि के स्थायित्व को अनुरणन कहते हैं ।
अनुरणन के ज्यादा लम्बा होने पर ध्वनि धुँधली , विकृत तथा भ्रामक हो जाती है ।
स्टेथोस्कोप :-
🔹 यह एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अन्दर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है । हृदय की धड़कन की ध्वनि स्टेथोस्कोप की रबर की नली में बारम्बार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुँचती है ।
श्रव्यता का परिसर :-
🔹 मनुष्य में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 2000 Hz तक होता है । 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुत्ते 25 KHz तक की ध्वनि सुन लेते हैं ।
अवश्रव्य ध्वनि :-
🔹 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं ।
कम्पन करता हुआ सरल लोलक अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है ।
गैण्डे 5 Hz की आवृत्ति की ध्वनि से एक – दूसरे से सम्पर्क करते हैं ।
हाथी तथा व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं ।
भूकम्प प्रघाती तरंगों से पहले अवश्रव्य तरंगें पैदा करते हैं जिन्हें कुछ जन्तु सुनकर परेशान हो जाते हैं ।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि :-
🔹20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों का पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं ।
🔹 कुत्ते , डॉलफिन , चमगादड़ , पॉरपॉइज़ ( शिंशुमार ) तथा चूहे पराध्वनि सुन सकते हैं । कुत्ते तथा चूहे पराध्वनि उत्पन्न करते हैं ।
श्रवण सहायक युक्ति :-
🔹 यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो कम सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है । माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं । ये प्रवर्धित संकेत युक्ति से स्पीकर को भेजे जाते हैं । स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलकर कान को भेजता है जिससे साफ सुनाई देता है ।
पराध्वनि के अनुप्रयोग :-
🔹 इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए ( बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए ) किया जाता है ।
🔹 यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है जिन तक पहुँचना कठिन होता है जैसे :- सर्पिलाकार नली , विषम आकार की मशीन आदि ।
🔹 पराध्वनि का उपयोग मानव शरीर के आन्तरिक अंगों जैसे यकृत , पित्ताशय , गर्भाशय , गुर्दे और हृदय की जाँच करने में किया जाता है ।
इकोकार्डियोग्राफी :-
🔹 इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिम्ब बनाने में किया जाता है । इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं ।
अल्ट्रासोनोग्राफी :-
🔹 वह तकनीक जो शरीर के आन्तरिक अंगों का प्रतिबिम्ब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है । अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है ।
NOT IN SYLLABUS 2022 ONWARDS
सोनार ( Sonar ) – ( Sound Navigation and Ranging ) :-
🔹 सोनार एक युक्ति जो पानी के नीचे पिड़ों की दूरी , दिशा तथा चाल नापने के लिए प्रयोग की जाती है ।
सोनार की कार्यविधि :-
सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होती है जो जहाज की तली में लगा होता है ।
प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न करके प्रेषित करता है ।
ये तरंगें पानी में चलती है , समुद्र के तल में पिण्डों से टकराकर परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और विद्युत संकेतों में बदल ली जाती है ।
वह युक्ति पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने तथा वापस जहाज तक आने में लिये गये समय को नाप लेती है ।
इस समय का आधा समय पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने में लिया जाता है ।
यदि पराध्वनि के प्रेषण और संसूचन का समय अन्तराल d है , समुद्र जल में ध्वनि की चाल v है तब तरंग द्वारा तय की गयी दूरी = 2d
🔹 2d = v × t यह विधि प्रतिध्वनिक परास कहलाती है ।
सोनार का उपयोग :-
🔹 समुद्र तल की गहराई नापने , जल के नीचे चट्टानों , घाटियों , पनडुब्बी , हिम शैल तथा डूबे हुए जहाज का पता लगाने में किया जाता है ।
मानव कर्ण की संरचना :-
🔹 कान संवेदी अंग है जिसकी सहायता से हम ध्वनि को सुन पाते हैं ।
🔹 मानव कर्ण तीन हिस्सों से बना है बाह्य कर्ण , मध्य कर्ण , अन्तःकर्ण
बाह्य कर्ण :-
बाह्य कान को कर्ण पल्लव कहते हैं , यह आस – पास से ध्वनि इकट्ठा करता है ।
यह ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है ।
श्रवण नलिका के अन्त पर एक पतली लचीली झिल्ली कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली होती है ।
मध्य कर्ण :-
🔹 मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ मुग्दरक , निहाई और वलयक एक – दूसरे से जुड़ी होती हैं । मुग्दरक का स्वतन्त्र हिस्सा कर्णपट्ट से तथा वलयक का अंतकर्ण के अण्डाकार छिद्र की झिल्ली से जुड़ा होता है ।
अंतःकर्ण :-
🔹 अंतःकर्ण में एक मुड़ी हुई नलिका कर्णावर्त होती है जो अण्डाकार छिद्र से जुड़ी होती है । कर्णावर्त में एक द्रव भरा होता है जिसमें तंत्रिका कोशिका होती है कर्णावर्त का दूसरा सिरा श्रवण तंत्रिका से जुड़ा होता है जो मस्तिष्क को जाती है ।
Some Important Questions:-
1. एक हर्ट्ज क्या है?
2. ध्वनि तरंग की समयावधि क्या है?
3. स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए आवश्यक न्यूनतम दूरी कितनी है?
4. दूरी के साथ ध्वनि फीकी क्यों हो जाती है?
5. प्रतिध्वनि के दो अनुप्रयोग बताइये।.
6. टोन, नोट और शोर के बीच अंतर करें।
7. एक ध्वनि में 3 सेकंड में 13 शिखर और 15 गर्त होते हैं। जब दूसरा शिखर उत्पन्न होता है तो पहला स्रोत से 2 सेमी दूर होता है? गणना
तरंग दैर्ध्य
आवृत्ति
लहर की गति
8. यह देखते हुए कि ध्वनि हवा में 340 मीटर/सेकंड की गति से चलती है, 20 किलोहर्ट्ज़ ध्वनि स्रोत द्वारा हवा में उत्पन्न तरंगों की तरंग दैर्ध्य ज्ञात करें।
9. यदि किसी स्रोत को पानी की टंकी में डाल दिया जाए तो पानी में ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य क्या होगी? पानी में ध्वनि की गति 1480m/s है।
10.पराध्वनि क्या होती है?
20,000 Hz से अधिक आवृत्ति की ध्वनि ।
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